Monday, December 12, 2011

देशभक्ति कविताएँ

घोर अंधकार हो,
चल रही बयार हो,
आज द्वार-द्वार पर यह दिया बुझे नहीं
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।
शक्ति का दिया हुआ,
शक्ति को दिया हुआ,
भक्ति से दिया हुआ,
यह स्वतंत्रता-दिया,
रुक रही न नाव हो
ज़ोर का बहाव हो,
आज गंग-धार पर यह दिया बुझे नहीं,
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है।

यह अतीत कल्पना,
यह विनीत प्रार्थना,
यह पुनीत भावना,
यह अनंत साधना,
शांति हो, अशांति हो,
युद्ध, संधि, क्रांति हो,
तीर पर, कछार पर, यह दिया बुझे नहीं,
देश पर, समाज पर, ज्योति का वितान है।

तीन-चार फूल है,
आस-पास धूल है,
बाँस है -बबूल है,
घास के दुकूल है,
वायु भी हिलोर दे,
फूँक दे, चकोर दे,
कब्र पर मज़ार पर, यह दिया बुझे नहीं,
यह किसी शहीद का पुण्य-प्राण दान है।

झूम-झूम बदलियाँ
चूम-चूम बिजलियाँ
आँधियाँ उठा रहीं
हलचलें मचा रहीं
लड़ रहा स्वदेश हो,
यातना विशेष हो,
क्षुद्र जीत-हार पर, यह दिया बुझे नहीं,
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है।

 मेरा हिन्दुस्तां: A Hindi poem on India on the eve of Independece Day


जहाँ हर चीज है प्यारी
सभी चाहत के पुजारी
प्यारी जिसकी ज़बां
वही है मेरा हिन्दुस्तां
जहाँ ग़ालिब की ग़ज़ल है
वो प्यारा ताज महल है
प्यार का एक निशां
वही है मेरा हिन्दुस्तां
जहाँ फूलों का बिस्तर है
जहाँ अम्बर की चादर है
नजर तक फैला सागर है
सुहाना हर इक मंजर है
वो झरने और हवाएँ,
सभी मिल जुल कर गायें
प्यार का गीत जहां
वही है मेरा हिन्दुस्तां
जहां सूरज की थाली है
जहां चंदा की प्याली है
फिजा भी क्या दिलवाली है
कभी होली तो दिवाली है
वो बिंदिया चुनरी पायल
वो साडी मेहंदी काजल
रंगीला है समां
वही है मेरा हिन्दुस्तां
कही पे नदियाँ बलखाएं
कहीं पे पंछी इतरायें
बसंती झूले लहराएं
जहां अन्गिन्त हैं भाषाएं
सुबह जैसे ही चमकी
बजी मंदिर में घंटी
और मस्जिद में अजां
वही है मेरा हिन्दुस्तां
कहीं गलियों में भंगड़ा है
कही ठेले में रगडा है
हजारों किस्में आमों की
ये चौसा तो वो लंगडा है
लो फिर स्वतंत्र दिवस आया
तिरंगा सबने लहराया
लेकर फिरे यहाँ-वहां
वहीँ है मेरा हिन्दुस्तां :D

Friday, May 27, 2011

जब मैं छोटा था, शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी..

जब मैं छोटा थाशायद दुनिया 
बहुत बड़ी हुआ करती थी..

मुझे याद है मेरे घर से "स्कूलतक
का वो रास्ताक्या क्या नहीं था वहां,
चाट के ठेलेजलेबी की दुकान,
बर्फ के गोलेसब कुछ,

अब वहां "मोबाइल शॉप",
"विडियो पार्लरहैं,
फिर भी सब सूना है..

शायद अब दुनिया सिमट रही है...
.
.
.
जब मैं छोटा था,
शायद शामें बहुत लम्बी हुआ करती थीं...

मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े,
घंटों उड़ा करता था,
वो लम्बी "साइकिल रेस",वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक के चूर हो जाना,

अब शाम नहीं होतीदिन ढलता है
और सीधे रात हो जाती है.

शायद वक्त सिमट रहा है..

.
.
.

जब मैं छोटा था,
शायद दोस्ती
बहुत गहरी हुआ करती थी,

दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना,
वो दोस्तों के घर का खाना,
वो लड़कियों की बातें,
वो साथ रोना...

अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है,
जब भी "traffic signalपे मिलते हैं
"Hi" हो जाती है,
और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,

होलीदीवालीजन्मदिन,
नए साल पर बस SMS आ जाते हैं,
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..
.
.

जब मैं छोटा था

तब खेल भी अजीब हुआ करते थे
,

छुपन छुपाई
लंगडी टांग
पोषम पा
कट केकटिप्पी टीपी टाप.

अब 
internet, office, 
से फुर्सत ही नहीं मिलती
..

शायद ज़िन्दगी बदल रही है
.
.

.

.


जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है
.. 
जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर
बोर्ड पर लिखा होता है
...

"
मंजिल तो यही थी
बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी
यहाँ आते आते
"
.

.

.

ज़िंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है
...

कल की कोई बुनियाद नहीं है


और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही है.. 


अब बच गए इस पल में
..

तमन्नाओं से भरी इस जिंदगी में
हम सिर्फ भाग रहे हैं
.. कुछ रफ़्तार धीमी करोमेरे दोस्त,
और इस ज़िंदगी को जियो...
खूब जियो मेरे दोस्त
,
और औरों को भी जीने दो..