एक कवि सम्मेलन में जब हमने
गम्भीर गीत गुनगुनाया
तो मंच पर बैठी हुई
एक खूबसूरत कवियत्री का स्वर आया
बहुत हो चुका
अब अपनी औकात पर आ जाइये
कोई हास्य रस की कविता सुनाइये
हमने कहा कैसे सुनाये
हँसी जब अपनी जिन्दगी में नहीं है
तो उसे अपनी कविता में कहां से लायें
?
आप बुरा ना मानें तो एक सलाह है हमारी
आप सत्य की तलाश छोड़ दें
वरना भटक जायेंगे
एक दिन ईसा की तरह
आप भी सूली पर लटक जायेंगे।
यशस्वी उपन्यासकार, महाकवि एवं सिद्ध संपादक श्रद्धेय डॉ. धर्मवीर भारती की पुण्यतिथि कोसमर्पित उनके जन्म-दिवस पच्चीस दिसम्बर पर
Monday, December 8, 2008
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